चंद्रयान 3 चंद्रमा पर जाकर किसकी करेगा ख़ोज ? 4 दिनों में क्या क्या पता लगाएगा चंद्रयान?

हमारे देश के वैज्ञानिकों ने वो कर दिया, जो दुनिया में अमेरिका, चीन जैसे तमाम बड़े बड़े देश कभी नहीं कर पाए. हमारे देश के वैज्ञानिकों ने वो कर दिया जो करते हुए पिछले हफ्ते रूस तक फेल हो गया. भारत का चंद्रयान जैसे ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर पहुंचा, ये इतिहास रचने वाला विश्व का पहला देश भारत बन गया। 23 अगस्त 2023, शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद पर भारत का सूर्योदय इस चमकते हुए मिशन चंद्रयान की लैंडिंग के साथ हुआ है. इसरो के सेंटर से आम लोगों के बीच भी तालियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी. इन तालियों की गड़गड़ाहट से कुछ सेकेंड पहले तक देशभर के लोगों की सांसें थमी हुई थीं.

विक्रम और रोवर क्या काम करेंगे?

लेकिन इस बार देश के वैज्ञानिक अपनी मेहनत पर पूरी तरह से आश्वस्त थे. और वो मेहनत रंग लाई. ऐसे में देशवासियों के मन में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अब विक्रम और रोवर क्या काम करेंगे? आइये जानते है की अब चाँद पर पहुंचने के बाद इनका आगे क्या काम रहेगा और कितने दिन तक वो वहा मौजूद रहेगा। आइये पहले जानते है की इस पुरे मिशन से वैज्ञानिकों के लिए क्या फायदा होगा। कुल मिलाकर विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिलकर चांद के वायुमंडल, सतह, रसायन, भूकंप, खनिज आदि की जांच करेंगे. इससे इसरो समेत दुनियाभर के वैज्ञानिकों को भविष्य की स्टडी के लिए जानकारी मिलेगी. रिसर्च करने में आसानी होगी. ये तो हो गई वैज्ञानिकों के लिए फायदे की बात अब जानते है की देश को क्या फायदा होगा…भारत दुनिया का चौथा देश है, जिसने यह सफलता हासिल की है. इससे पहले यह कीर्तिमान अमेरिका, रूस और चीन ने स्थापित किया था। अब जानते है इससे ISRO को क्या फायदा होगा

34 देशों के 424 विदेशी सैटेलाइट्स को छोड़ चुका है

इसरो दुनिया में अपने किफायती कॉमर्शियल लॉन्चिंग के लिए जाना जाता है. अब तक 34 देशों के 424 विदेशी सैटेलाइट्स को छोड़ चुका है. 104 सैटेलाइट एकसाथ छोड़ चुका है. वह भी एक ही रॉकेट से. चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी खोजा. चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर आज भी काम कर रहा है. उसी ने चंद्रयान-3 के लिए लैंडिंग साइट खोजी. मंगलयान का परचम तो पूरी दुनिया देख चुकी है. चंद्रयान-3 की सफलता इसरो का नाम दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेसियों में शामिल कर देगी। अब जानते है इससे आम आदमी को होगा ये फायदा। चंद्रयान और मंगलयान जैसे स्पेसक्राफ्ट्स में लगे पेलोड्स यानी यंत्रों का इस्तेमाल बाद में मौसम और संचार संबंधी सैटेलाइट्स में होता है. रक्षा संबंधी सैटेलाइट्स में होता है. नक्शा बनाने वाले सैटेलाइट्स में होता है. इन यंत्रों से देश में मौजूद लोगों की भलाई का काम होता है. संचार व्यवस्थाएं विकसित करने में मदद मिलती है. निगरानी आसान हो जाती है। अब बात आती है की चांद पर 1 दिन का ही मिशन क्यों?

23 अगस्त से 5 सितंबर के बीच दक्षिणी ध्रुव पर धूप निकलेगी

तो चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. 23 अगस्त को चांद के दक्षिण ध्रुव पर सूरज निकलेगा. यहां 14 दिन तक दिन रहेगा. इस वजह से चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर 14 दिनों तक चांद की सतह पर रिसर्च करेगा… चंद्रयान-3 का लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरने के बाद अपने मिशन का अंजाम देने के लिए सौर्य ऊर्जा का इस्तेमाल करेगा। फिर चांद पर 14 दिन तक दिन और अगले 14 दिन तक रात रहती है, अगर चंद्रयान ऐसे वक्त में चांद पर उतरता कि जब वहां रात हो तो वह काम नहीं कर पाता। इसरो सभी चीजों की गणना करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि 23 अगस्त से चांद के दक्षिणी ध्रुव सूरज की रौशनी उपलब्‍ध रहेगी। वहां रात्रि के 14 दिन की अवधि 22 अगस्त को समाप्त हो रही है। 23 अगस्त से 5 सितंबर के बीच दक्षिणी ध्रुव पर धूप निकलेगी, जिसकी मदद से चंद्रयान का रोवर चार्ज हो सकेगा और अपने मिशन को अंजाम देगा। लैंडिंग के साथ ही लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान ने अपना काम शुरू कर दिया है.

राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो की छाप छोड़ेंगे

लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग सफल होने के बाद रैंप के जरिए छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर बाहर आया और इसरो से कमांड मिलते ही चांद की सतह पर चलने लगा. यह 500 मीटर तक के इलाके में चहलकदमी कर पानी और वहां के वातावरण के बारे में इसरो को बताएगा. इस दौरान इसके पहिए चांद की मिट्टी पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो की छाप छोड़ेंगे। इस मिशन के लिए मेहनत तो इसरो के वैज्ञानिकों ने की लेकिन पीछे पूरा भारत उनके साथ खड़ा था। अब चाँद क्या क्या खोजेगा चंद्रयान जानते है। चंद्रयान में स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री नाम का एक उपकरण है। इसे SHAPE यानी Spectro-polarimetry of Habitable Planet Earth नाम दिया गया है। SHAPE पृथ्वी से आने वाले प्रकाश का अध्ययन करेगा। इसका मकसद यह पता लगाना है कि जिन खगोलीय पिंडों पर जीवन होता है उनसे आने वाले प्रकाश और बाकी पिंडों से आने वाले प्रकाश के स्पेक्ट्रम में क्या अंतर होता है।

इसे अमेरिकी स्‍पेस एजेंसी ‘नासा’ ने डिजाइन किया है

यह प्रयोग खगोल विज्ञान के लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके जरिए पृथ्वी जैसे उन ग्रहों की खोज में काफी मदद मिलेगी। इसके सफल होने से भारत अमेरिका स्पेस एजेंसी नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी की कतार में खड़ा हो जाएगा। धरती और चांद के बीच की सटीक दूरी की जानकारी भी इससे मिलेगी जी हां चंद्रयान-3 के साथ एक LASER Retroreflector Array नाम का एक जरूरी इंस्ट्रूमेंट लगा है, जो लगातार धरती और चांद के बीच की सटीक दूरी की जानकारी देगा। इसे अमेरिकी स्‍पेस एजेंसी ‘नासा’ ने डिजाइन किया है।अपने-अपने ऑर्बिट में घूमने के कारण पृथ्‍वी और चंद्रमा के बीच की दूरी घटती- बढ़ती रहती है। इस LASER की मदद से हम चंद्रमा के ऑर्बिट और इसके धरती पर प्रभाव की जानकारी पा सकेंगे। इससे समुद्र में उठने वाले ज्‍वार-भाटा का अनुमान लगाने और तटीय इलाकों के वातावरण को समझने और मैनेज करने में आसानी होगी। प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह की मिट्टी भी जमा करेगा।

हम सभी जानते हैं कि पदार्थ की तीन अवस्थाएं होती हैं

चंद्रमा की मिट्टी का परीक्षण करने के लिए रोवर में Alpha Particle X-ray Spectrometer and Laser Induced Breakdown Spectrometer, दो बेहद जरूरी उपकरण लगे हुए हैं। .. चंद्रमा की मिट्टी के परीक्षण से यह पता चल पाएगा कि‍ वास्‍तव में चंद्रमा कितना पुराना है और समय के साथ इसमें क्‍या बदलाव हुए हैं। यह पृथ्‍वी समेत हमारे पूरे सौर मंडल के जन्‍म से जुड़े राज खोलने में मदद कर सकता है।. चंद्रयान-3 RAMBHA यानी रंभा और लैंगमुइर प्रोब यानी (LP) नाम के दो खास उपकरण भी चंद्रमा पर लेकर गया है। ये उपकरण चंद्रमा की सतह पर प्लाज्मा एक्टिविटी का अध्ययन करेंगे। हम सभी जानते हैं कि पदार्थ की तीन अवस्थाएं होती हैं। ठोस, तरल और गैस। प्लाज्मा एक तरह से पदार्थ की चौथी अवस्था होती है। यह किसी पदार्थ की बेहद गर्म अवस्था होती है। ये इतनी गर्म होती है कि उस पदार्थ के परमाणुओं से इलेक्ट्रॉन बाहर निकल जाते हैं। इलेक्ट्रॉन के निकलते ही यह सुपरहीटेड पदार्थ ऐसी गैस में बदल जाता है जिनमें आवेश यानी चार्ज होता है। इन्हें ऑयनाइज्ड गैस कहते हैं। यह गैस अंधेरे में तैरते या नाचते प्रकाश की तरह दिखाई देती है।

दूरबीनों से दिखने वाला 99% ब्रह्मांड भी इसी ऑयन गैसों की वजह से दिखता है

उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के करीब आसमान में अक्सर नीले और पीले रंग का प्रकाश नाचता सा दिखाई देता है। इन्हें नेबुला कहा जाता है। ये कुछ और नहीं बल्कि आवेशित ऑयन गैस ही होती हैं। दूरबीनों से दिखने वाला 99% ब्रह्मांड भी इसी ऑयन गैसों की वजह से दिखता है। आवेशित होने की वजह से प्लाज्मा पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से भारी असर पड़ता है। इंसान लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के लिए चंद्रमा को स्टेशन बनाना चाहता है, ऐसे में चंद्रयान ये पता करेगा कि चंद्रमा की सतह पर मौजूद प्लज्मा से इंसानों और उनके उपकरणों को कितना खतरा है और इससे कैसे बचा जा सकता है। चंद्रयान 3 अपने साथ एक खास उपकरण ILSA यानी instrument for lunar seismic activity लेकर गया है। यह चांद की सतह पर हो रहे कंपन के बारे में जानकारी जुटाएगा। ऐसा माना जाता है कि चांद धरती की तुलना में 1000 गुना ज्यादा स्थिर है। ILSA की स्टडी के बाद चांद पर जीवन की संभावनाओं के रास्ते खुलेंगे। इसका एक मकसद चांद की सतह पर LIGO यानी लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल वेव ऑबजर्वेटरी सेटअप करना भी है। जो चांद पर ब्लैक होल्स या न्यूट्रॉन्स की टक्कर से उत्पन्न ग्रेविटेशनल वेव्स की स्टडी करेगा।

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