रूस से तेल खरीदने के लिए चाइनीज करेंसी में पेमेंट:भारत की मजबूरी क्या है, जिसका फायदा उठा रहा चीन

दुनिया भर में ज्यादातर कारोबार अमेरिका की करेंसी डॉलर में होता है। फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन जंग शुरू हुई तो रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए। इसके बाद रूस किसी देश के साथ अमेरिकी डॉलर में लेनदेन नहीं कर सकता था। रूस ने सस्ते में तेल खरीदने का ऑफर दिया तो भारत फौरन तैयार हो गया। सोने पर सुहागा ये हुआ कि रूस रुपए में पेमेंट लेने को तैयार हो गया। हालांकि, अब खबर आ रही है कि भारतीय कंपनियां रूस से तेल खरीदने के लिए डॉलर या रुपया नहीं, चीनी करेंसी युआन का इस्तेमाल कर रही हैं।

रूस से तेल खरीदने के लिए भारत चीनी करेंसी में पेमेंट करने को क्यों मजबूर है, इसका फायदा चीन कैसे उठा रहा है?

रूस से तेल खरीदने के लिए युआन में पेमेंट करने की बात कहां से उठी, समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने 3 जुलाई को प्रकाशित अपनी एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में लिखा है कि जून 2023 से ही भारत की तेल कंपनियां रूस से तेल खरीदने के लिए चीनी करेंसी युआन में भुगतान शुरू कर चुकी हैं। भारत की 3 बड़ी प्राइवेट रिफाइनर कंपनियों में से 2 कंपनियां अब युआन में पेमेंट करने लगी हैं। हालांकि, रिपोर्ट में इस बात की जानकारी नहीं है कि भारत ने युआन करेंसी के जरिए कितना तेल रूस से खरीदा है। रिपोर्ट में भारत सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि रिफाइनर्स सबसे पहले डॉलर में भुगतान करना चाहते हैं, लेकिन बेचने वाले नहीं मानते तो UAE की करेंसी दिरहम या चीनी करेंसी युआन में पेमेंट करना होता है।


भारत की किन मजबूरियों का फायदा उठा रहा है चीन?


पिछले साल रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने रूस के बैंकों को भारत में वोस्ट्रो अकाउंट खोलने की इजाजत दी। भारत और रूस के बड़े बैंकों ने एक-दूसरे देशों में वोस्ट्रो अकाउंट खोले, जिससे दोनों देशों की करेंसी रुपए और रूबल में कारोबार किया जा सके। कुछ समय बाद ही रुपए में लेनदेन करने से मना कर दिया गया।
इसकी 3 वजहे हैं

  1. भारत के व्यापार घाटे से रूस के पास लगा भारतीय करेंसी का अंबार भारत और रूस के बीच आयात और निर्यात में काफी अंतर है। वित्त वर्ष 2022-23 में भारत ने रूस से 3.82 लाख करोड़ का सामान इम्पोर्ट यानी आयात किया। वहीं, रूस ने इतने समय में भारत से करीब 25 हजार करोड़ रुपए का सामान खरीदा है। इसका मतलब ये हुआ कि रूस से भारत को व्यापार घाटा होता है। इसके चलते रूसी बैंकों के पास भारतीय रुपए का अंबार लग गया। पिछले साल करीब 32 हजार करोड़ रुपए भारतीय करेंसी रूस के पास पड़ी रही।
  2. रुपए को दूसरी करेंसी में कंवर्ट कराना मुश्किल
    दुनिया में गिने-चुने देश भारतीय रुपए में लेनदेन करते हैं। बीते 16 महीने में रूसी बैंकों के पास काफी रुपए जमा हो गए। रुपए को दूसरी करेंसी में कंवर्ट कराना मुश्किल है। साथ ही रुपया देकर आप ज्यादातर देशों से सामान भी नहीं मंगा सकते। रूस इन पैसों से सिर्फ भारत के साथ ही कारोबार कर सकता है। इसलिए रूस ने रुपए में लेन-देन को रोक दिया। इसके अलावा रूसी करेंसी रूबल जंग के बाद से ही लगातार हिचकोले खा रही है। रूसी करेंसी की वैल्यू स्थिर नहीं है। ऐसे में भारत भी तेल खरीदने के लिए इस करेंसी में लेनदेन करने से बचना चाहता है।
  3. अमेरिकी डॉलर और यूरो से लेनदेन पर प्रतिबंध
    अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने रूस को इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन नेटवर्क SWIFT से बाहर कर दिया है। इसका मतलब ये हुआ कि रूस अब डॉलर और यूरो में लेनदेन नहीं कर सकता। यानी अगर भारत चाहे कि वो रूस से तेल खरीदने के लिए बदले डॉलर में पेमेंट कर दे, तो ये संभव नहीं है। ये तीनों रास्ते बंद होने के बाद भारत के पास रूसी तेल के लिए चीनी करेंसी युआन में ही पेमेंट का सुलभ ऑप्शन बनता है, जिसको न चाहते हुए भी भारत को इस्तेमाल करना पड़ रहा है। इससे चीन को फायदा मिल रहा है भारत अगर युआन में पेमेंट करता है तो इससे चीन को क्या फायदा है, दुनिया भर में कारोबार करने और पेमेंट के लिए अमेरिका ने SWIFT सिस्टम बनाया है। SWIFT नेटवर्क में फिलहाल 200 से ज्यादा देशों के 11,000 बैंक शामिल हैं, जो अमेरिकी बैंकों में अपना विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। SWIFT की ही तरह चीन के सेंट्रल बैंक पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने CIPS नाम का सिस्टम बनाया है। इस पेमेंट सिस्टम से करीब 103 देशों के 1300 बैंक जुड़ चुके हैं। पिछले साल इस सिस्टम के जरिए 80 ट्रिलियन युआन (चीन की करेंसी) से ज्यादा का ट्रांजैक्शन हुआ। जनवरी 2022 में युआन दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा ट्रांजैक्शन वाली करेंसी बन गई। उससे आगे सिर्फ US डॉलर, यूरो और ब्रिटिश पाउंड थे। युआन रिजर्व को बढ़ावा देने के लिए चीन ने 40 से ज्यादा देशों के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट किया है। इस एग्रीमेंट के तहत 2 देशों को व्यापार करने कि लिए हर बार SWIFT सिस्टम की जरूरत नहीं। एक फिक्स अमाउंट का ट्रेड वो देश अपनी करेंसी में कर सकते हैं। इसके अलावा सऊदी अरब से भी चीनी करेंसी में तेल की पेमेंट करने की बात हो रही है। यानी जो देश तेल खरीदने के लिए अभी डॉलर रिजर्व रखते हैं, वो युआन में रिजर्व रखेंगे। इससे डॉलर का दबदबा कम होगा और चीन यही चाहता है। चीनी करेंसी में लेनदेन से भारतीय रुपए को झटका लगेगा भारत चाहता है कि उसकी करेंसी रुपए की इंटरनेशनल मान्यता बढ़े। RBI ने बीते दिनों इसके लिए कुछ प्रयास भी किए हैं… RBI ने IMF से भारतीय रुपए को SDR यानी विशेष आहरण अधिकार में शामिल करने की मांग की है। SDR एक तरह से IMF का रिजर्व एसेट होता है। इसमें अब तक 5 करेंसी (अमेरिकी डॉलर, यूरो, चीनी युआन, जापानी येन और ब्रिटिश पाउंड) शामिल हैं।
    सीमा पार व्यापारिक लेनदेन में रुपए के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक ने रियल टाइम ग्रॉस सैटलमेंट यानी RTGS को बढ़ावा देना शुरू किया है
    भारतीय बैंकों ने दूसरे देशों में वोस्ट्रो अकाउंट खोलने शुरू कर दिए हैं। इसके जरिए दूसरे देशों की कंपनी को या वहां के लोगों को रुपए में पेमेंट करना आसान होता है। भारत ने रूस के साथ रुपए में कारोबार के लिए SBI को ऑथोराइज किया है। 7 सितंबर को रिजर्व बैंक और फाइनेंस मिनिस्ट्री ने बैंक से इंपोर्ट और एक्सपोर्ट ट्रांजैक्शन को रुपए में करने का बढ़ावा देने की बात कही थी। अधिकारियों का मानना था कि इससे रुपए को मजबूती मिलेगी। रूसी तेल के लिए युआन में पेमेंट निश्चित रूप से भारतीय करेंसी को इंटरनेशनल बनाने की दिशा में एक झटके की तरह है।

आगे का रास्ता…

अगर भारतीय रुपए की वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ानी है तो भारत को अपना एक्सपोर्ट बढ़ाना होगा। मान लीजिए अगर भारत रूस को ज्यादा एक्सपोर्ट करने लगे तो उसकी रुपए की खपत बढ़ जाएगी और वो रुपए में पेमेंट लेने लगेगा। हालांकि, ये कई सालों का प्रॉसेस है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन की कोशिशें नुकसान तो पहुंचा रहीं, लेकिन बड़ा इम्पैक्ट आने में काफी वक्त लगेगा। डॉलर के खिलाफ इस अभियान में रूस और चीन को दूसरे देशों के साथ की दरकार है। हालांकि, एक्सपर्ट्स युआन को डॉलर की जगह फिट नहीं पाते। इसकी सबसे बड़ी वजह चीन की सरकार है। यहां लोकतंत्र नहीं है, जिस वजह से इंस्टीट्यूशन में ट्रांसपेरेंसी भी नहीं है। कोई भी देश ऐसी किसी करेंसी को रिजर्व नहीं रखना चाहेगा, जिसके डूबने का खतरा ज्यादा हो।

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