आज दुनिया की निगाहे हमारे देश भारत पर है। क्यों आइये आपको बताते है। इसकी वजह है हमारा चाँद पर भेजा हुआ अंतरिक्ष यान। पिछले कुछ सालों से चंद्रमा पर दुनिया भर के देश अपने-अपने अंतरिक्ष यान भेजने की दौड़ में जी जान से जुटे हुए हैं। आज शाम हमारा चंद्रयान 3 भी चांद के साउथ वाले हिस्से पर उतरने की कामयाब कोशिश करने वाला है। करोड़ों भारतीयों की या यूं कहें कि पूरी दुनिया की निगाहें इस वक़्त हम पर टिकी हुई है। आज इसरो की अग्नि परीक्षा है। चंद्रयान-3 आज शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के साउथ पोल कर लैंड करेगा। इसे 14 जुलाई को 3 बजकर 35 मिनट पर आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था।
एक-दूसरे की फोटो खीचेंगे और पृथ्वी पर सेंड करेंगे
लैंडिंग होते ही यह 41 दिन में 3.84 लाख किमी का सफर तय कर नया इतिहास लिखेगा। लैंडर के चांद पर उतरते ही रैंप खुलेगा और प्रज्ञान रोवर इससे चांद की सतह पर आएगा। विक्रम लैंडर और प्रज्ञान एक-दूसरे की फोटो खीचेंगे और पृथ्वी पर सेंड करेंगे। अगर भारत इस मिशन में सफल रहा तो चांद के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला देश होगा। इसरो के बेंगलुरु स्थित टेलीमेट्री एंड कमांड सेंटर (इस्ट्रैक) के मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लैक्स (मॉक्स) में 50 से ज्यादा विज्ञानी कंप्यूटर पर चंद्रयान-3 से मिल रहे आंकड़ों की रात भर पड़ताल में जुटे रहे। वे लैंडर को इनपुट भेज रहे हैं, ताकि लैंडिंग के समय गलत फैसला लेने की हर गुंजाइश खत्म हो जाए। सभी सांकेतिक भाषा में बात कर रहे हैं। कमांड सेंटर में उत्साह-बैचेनी का मिला-जुला माहौल है।
आखिरी 19 मिनट सांसें रोक देने वाले होंगे
इसरो वैज्ञानिक बेंगलुरु स्थित इसरो टेलिमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (इस्ट्रैक) और ब्यालालू गांव स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क पर मिल रहे डेटा के अलावा यूरोपियन स्पेस एजेंसी के जर्मनी स्थित स्टेशन, ऑस्ट्रेलिया और नासा के डीप स्पेस नेटवर्क से रियल टाइम डाटा लेकर वेरिफिकेशन कर रहे हैं। … इसरो चेयरमैन एस सोमनाथ ने 9 अगस्त को विक्रम की लैंडिंग को लेकर कहा था- ‘अगर सब कुछ फेल हो जाता है, अगर सभी सेंसर फेल हो जाते हैं, कुछ भी काम नहीं करता है, फिर भी यह (विक्रम) लैंडिंग करेगा, बशर्ते एल्गोरिदम ठीक से काम करें। हमने यह भी सुनिश्चित किया है कि अगर इस बार विक्रम के दो इंजन काम नहीं करेंगे, तब भी यह लैंडिंग में सक्षम होगा।’ … उन्होंने बताया कि चंद्रयान-3 के आखिरी 19 मिनट सांसें रोक देने वाले होंगे। लैंडिंग शुरू होते समय गति 6,048 किमी/घंटा होगी।
लैंडिंग का लाइव इवेंट शाम 5:20 बजे से शुरू होगा
चांद को छूते समय यह 10 किमी/घंटे से भी कम होगी। उतरने के लिए स्थान का चुनाव ISRO कमांड सेंटर से नहीं होगा। लैंडर अपने कंप्यूटर से जगह का चुनाव करेगा। …. लैंडिंग का लाइव इवेंट शाम 5:20 बजे से शुरू होगा। इस इवेंट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वर्चुअली जुड़ेंगे। अभी वो साउथ अफ्रीका में हैं इसलिए वर्चुअली शामिल हो रहे हैं। वहीं मिशन की सफलता के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी में जगह-जगह पर हवन कराए जा रहे हैं। … इससे पहले रूसी अंतरिक्ष यान लूना 25 जो कि हमसे पहले चांद पर उतरने वाला था वो बदक़िस्मती से असफल हो गया। यानी अब भारतीय चंद्रयान 3 मिशन पर सबकी नज़रें है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब यही है कि आखिर पूरी दुनिया चांद के इस अंधेरे में डूबे खतरनाक दक्षिणी हिस्से के पीछे क्यों पड़ी हुई है? तो चलिए आज चंदा मामा की इसी पहेली का जवाब खोजते हैं हम।
23 अगस्त शाम साढ़े पांच बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला है
सबसे पहले चांद के इस साउथ वाले हिस्से की गणित समझ लेते हैं उसके बाद बाक़ी जवाब अपने आप मिलते चले जाएंगे। चंद्रयान – 3 अब से कुछ घंटों बाद 23 अगस्त शाम साढ़े पांच बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला है.अगर चंद्रयान – 3 दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग यानी बेहद आराम से उतरने में कामयाब हो जाता है तो ये अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की ओर से बड़ी छलांग लगाने जैसा होगा. … क्योंकि दुनिया का कोई भी देश अब तक चांद के इस हिस्से पर सॉफ़्ट लैंडिंग करने में कामयाब नहीं हो पाया है। इसकी सबसे बड़ी वजह इस क्षेत्र की विशेष भौगोलिक पृष्ठभूमि है। ये जगह चांद के उस हिस्से की तुलना में काफ़ी अलग और रहस्यमयी है जहां अब तक दुनिया भर के देशों की ओर से स्पेस मिशन भेजे गए हैं।चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कई ज्वालामुखी हैं और यहां की ज़मीन बेहद ऊबड़-खाबड़ है।
पानी मिलने की संभावनाएं कई उम्मीदों को जन्म देती हैं
इस क्षेत्र में कई आसमान छूने वाले पर्वत और गहरे गड्ढे मौजूद हैं जो रोशनी वाले दिनों में भी अंधेरे में डूबे रहते हैं। इनमें से एक पर्वत की ऊंचाई साढ़े सात हज़ार मीटर है. इन गड्ढों और पर्वतों की छांव में आने वाले हिस्सों में तापमान -203 डिग्री सेल्सियस से -243 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। तो आप अंदाजा लगा लीजिए दुनिया क्यों इस हिस्से के पीछे पड़ी है। …. विशेषज्ञों के मुताबिक़, इस लूनर रेस के पीछे तमाम वजहों में से एक वजह पानी की मौजूदगी है। नासा के अंतरिक्ष यान लूनर रिकानसंस ऑर्बिटर की ओर से जुटाए गए आंकड़ों से संकेत मिलता है कि चंद्रमा पर मौजूद अंधेरे में डूबे गहरे गड्ढों में बर्फ मौजूद है। चांद पर पानी मिलने की संभावनाएं कई उम्मीदों को जन्म देती हैं। दुनिया के कई देश चंद्रमा पर इंसानों को भेजने की योजना बना रहे हैं.
चांद पर भी बहुमूल्य पानी का बिजनेस करने की फिराक में
लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर रहने के लिए पानी की ज़रूरत होगी। और पृथ्वी से चंद्रमा तक पानी पहुंचाना एक बेहद महंगा सौदा है. क्योंकि पृथ्वी से एक किलोग्राम सामान बाहर ले जाने की कीमत एक मिलियन डॉलर है। यानी कुल मिलाकर इंसान अब चांद पर भी बहुमूल्य पानी का बिजनेस करने की फिराक में है। …. खैर यह तो भविष्य में ही पता चलेगा कि चांद पर मौजूद संभावित बर्फ से क्या क्या किया जा सकेगा। फिलहाल तो आज शाम हमारा चंद्रयान 3 चांद को चूमने की पूरी तैयारी कर चुका है। आइए हम सब मिलकर सफल लैंडिंग के लिए प्रार्थना करें। ……. अगर हमारा देश यह आज उपलब्धि हासिल कर लेता है तो हमारा देश एक अलग मुकाम हासिल कर लेगा।