राजस्थान चौक। समय शाम के 5.30 बजे, जगह राजस्थान के आबू पर्वत की तलहटी में ब्रह्माकुमारीज इंटरनेशनल हेडक्वार्टर का डायमंड हॉल। सामने विशाल पर्वत, रिमझिम-रिमझिम बारिश, चारों ओर सफेद साड़ी में 450 दुल्हन, लगभग 8000 बाराती और एक दूल्हा। कभी देखी है आपने ऐसी शादी। मैं देख रही हूं। इस विवाह की साक्षी बन रही हूं। आपको पता है कि इन सबका दूल्हा कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि भगवान शिव हैं। सभी ब्रह्माकुमारीज शिवलिंग को वरमाला पहनाकर उनके साथ फेरे लेंगी। इसके साथ ही उम्रभर के लिए शिव इनके साजन बन जाएंगे। दुल्हनों की एंट्री हॉल में होती है। दिल की धड़कन बढ़ा देने वाले हाई वोल्टज स्पीकर पर म्यूजिक बज रहा है। सेवादार झालरदार किनारी वाली छतरियां लेकर खड़े हैं। दुल्हनों के बाद ब्रह्माकुमारीज के वरिष्ठजन आते हैं। सभी को आशीर्वाद देते हैं। हॉल में कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे हैं। जिसमें शिव को समर्पित होने का संदेश दिया जा रहा है। फिर बारी-बारी से दुल्हनें खुद को शिव को समर्पित करने की प्रतिज्ञा लेती हैं। इसके बाद शिवलिंग को वरमाला पहनाती हैं। इस तरह उनकी शादी शिव से हो जाती है।
दुल्हनें खुद भी अपनी शादी की खुशी में नाच रही हैं
दुल्हनों के माता-पिता और परिवार वाले भी यहां मौजूद हैं। वो बराती माने जाते हैं। मैं देख रही हूं कि बरातियों की तरह उनकी आवभगत हो रही है। जाते वक्त उन्हें नेग भी दिया जा रहा है। शादी होने के बाद बाराती ढोल पर थिरक रहे हैं। दुल्हनें खुद भी अपनी शादी की खुशी में नाच रही हैं। ब्रह्माकुमारीज के बीच शिव का अलग रूप है। उनके शिव की कोई देह नहीं हैं, न ही कोई तस्वीर हैं। वह निराकार हैं। इन्हें बाबा के नाम से लोग पुकारते हैं। हर दिन यहां मुरली होती है। दरअसल, सुबह की आध्यात्मिक क्लास को यहां पर मुरली कहते हैं। इसमें आत्मा को परमात्मा से बात करना सिखाया जाता है। इसका मूल श्रीमद्भगवद्गीता का सार है। यहां के लोग मुलाकात और विदा के वक्त एक दूसरे को ओम शांति बोलते हैं। ये न तो अपने शरीर को शरीर मानते हैं और न ही शिव को शरीर रूप में। इनका मानना है कि शिव एक आत्मा हैं और इंसान भी एक आत्मा हैं। शरीर तो सिर्फ एक वस्त्र है।
ब्रह्माकुमारीज के इस हेडक्वार्टर में मीडिया से जुड़े कामों में सहयोग करती हैं
ब्रह्माकुमारीज के नाम के आगे बीके लगाया जाता है। ‘ईज’ इनका सालाना उत्सव है, जिसका शिद्दत से इंतजार किया जाता है। बीके पूजा की मां और उनके परिवार का हर सदस्य उन्हें यहां छोड़ने आया है। बीके पूजा ने BBA किया है और वह दिल्ली की रहने वाली हैं। वह ब्रह्माकुमारीज के इस हेडक्वार्टर में मीडिया से जुड़े कामों में सहयोग करती हैं। उनकी मां दीप्ति कहती हैं, ‘मुझे जरा भी दुख नहीं है कि मैं अपनी जवान बेटी को शिव को समर्पित करने जा रही हूं। परमात्मा को पति के रूप में तो मीरा के जमाने से ही मान लिया गया था। मेरी बेटी के साजन अब शिव ही हैं। वह अविनाशी हैं, बेटी को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे, जब वो पुकारेगी तो हाजिर हो जाएंगे। यहां पर मेरी मुलाकात मुरादाबाद की रहने वाली भाषा से होती है। वह बताती हैं, ‘एक दिन उनका पैर फ्रैक्चर हो गया। ऑफिस का काम घर से ही करने लगी। बिस्तर पर लेटे-लेटे ब्रह्माकुमारीज के संदेश सुनने लगी। उसके बाद जीवन में बदलाव आना शुरू हो गया। लगा कि मैं यह क्यों कर रही हूं। किसके लिए कर रही हूं। यह सब किसके काम आएगा। ठीक होने के बाद ब्रह्माकुमारीज सेंटर जाना शुरू कर दिया। इसके बाद घर वालों को बताया कि मैं ब्रह्माकुमारी बनने जा रही हूं।’
ये लोग सुबह साढ़े तीन बजे उठकर मेडिटेशन करते हैं
मैंने भाषा से पूछा- परिवार वालों ने विरोध नहीं किया? कहती हैं, ‘किया न। सब कहने लगे कि सेंटर जाने तक तो ठीक है लेकिन संन्यास लेने का क्या मतलब है। मैंने उनकी नहीं सुनी और सब कुछ छोड़कर माउंट आबू सेंटर आ गईं। पिछले दस साल से यहां अकाउंट्स विभाग में सेवा कर रही हूं। कभी-कभी अपने घर भी जाती हूं।’ क्या संन्यासी अपने घर जा सकती हैं? इस पर लंदन सेंटर में रहने वाली इंटरनेशनल एडमिनिस्ट्रेटिव हेड बीके जयंती बताती हैं कि हम संन्यासी होते हुए भी अपने घर जा सकते हैं। परिवार भी उनके साथ सेंटर्स में आकर रह सकता है। इस सेंटर्स में बाकी हिंदू देवी-देवताओं की भी तस्वीरें हैं। वह बताती हैं कि हम इंसान को श्रेष्ठ इंसान बनाने की कोशिश करते हैं। हमें भी इन देवी-देवताओं की तरह श्रेष्ठ होना चाहिए। ये लोग सुबह साढ़े तीन बजे उठकर मेडिटेशन करते हैं। यहां आंखें खोलकर मेडिटेशन किया जाता है। मन की आंख से परमात्मा को देखना होता है। इसे राजयोग मेडिटेशन कहते हैं। आत्मा से परमात्मा का मिलन, परमात्मा से बातें करना, हर दिन की बातें परमात्मा को बताना, उनसे मशविरा करना यहां पर सिखाया जाता है। सारी शक्ति को एकाग्र करके माथे के बीच लाना होता है।
क्या शादीशुदा लोग भी यहां संन्यासी बन सकते हैं?
जवाब मिलता है, ‘शादी के बाद अगर पति-पत्नी ब्रह्माकुमारी बन जाते हैं तो दोनों के बीच किसी भी प्रकार के यौन संबंध नहीं होते। पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।’ माउंट आबू की तलहटी में बसा यह संस्थान पहले माउंट आबू पर्वत के शिखर पर हुआ करता था। हालांकि बढ़ रहे कारवां की वजह से जगह छोटी पड़ने लगी। अब वहां लोग घूमने जाते हैं, कुछ मेडिटेशन कोर्स होते हैं। मैनेजमेंट कोऑर्डिनेशन और बड़े मेडिटेशन कैंप तलहटी में ही होते हैं। हरे पहाड़, पानी के झरने और नक्की झील की खूबसूरती निहारते हुए मैं शिखर पर बसे ब्रह्माकुमारीज के इस ऐतिहासिक स्थान पर पहुंचती हूं। यहां मुख्यत: तीन स्थान हैं। पहला हिस्ट्री हॉल, फिर बाबा की झोपड़ी, फिर बाबा का कमरा। हिस्ट्री हॉल में पाकिस्तान से भारत आने से लेकर अब तक की कहानी है। बाबा की झोपड़ी बहुत बड़ी नहीं है। मात्र दस लोग बैठ सकते हैं। दस-दस मिनट के अंतराल में लोग यहां मेडिटेशन के लिए बैठ रहे हैं। फटी आंखों से प्रजापिता ब्रह्मा बाबा को निहार रहे हैं। यहां कुछ ब्रह्माकुमारीज कागज पर पत्र लिख रही हैं। इस पत्र के माध्यम से वह शिव जी से बातें करती हैं।
20 मिनट में 4,000 लोगों के लिए एक साथ खाना बनता है
अंदर झोंपड़ी में एक बॉक्स रखा हुआ है, जहां इस पत्र को शिव बाबा तक पहुंचाने के लिए डाला जाता है। तीसरा है बाबा का कमरा यहां वह प्रबंधन संबंधी कामकाज और निर्णय लिया करते थे। यहां भी लाल रंग के प्रकाश में मेडिटेशन हो रहा है। सेंटर में सब जगह भीड़ है। विवाह की वजह से सभी बाराती घूम रहे हैं। इतनी भीड़ के बावजूद कहीं शोर नहीं है, भोजन के लिए मारामारी नहीं है। कोई ऊंची आवाज में बात नहीं कर रहा है। यहां सात्विक भोजन परोसा जाता है। सेंटर पर मिलने वाला खाना लाजवाब है। मैंने सुबह के भोजन में मिस्सी रोटी, सांभर और उपमा खाया। यहां फीकी चाय, फीकी कॉफी और फीका दूध सब उपलब्ध है। जिसे जो पीना हो पी सकता है। दोपहर के भोजन में दो सब्जियां, एक दाल, मीठे आम की चटनी, छाछ, रोटी,चावल मिलता है। ब्रह्माकुमारीज की रसोई को मैं करीब से देखने पहुंची। पहली बार में देखने पर लगा कि मैं किसी कारखाने में आ गई हूं। यहां 20 मिनट में 4,000 लोगों के लिए एक साथ खाना बनता है। दाल, सब्जी धोने से लेकर पकाने तक की सुविधा मशीनों से होती है। मशीनों पर रोटियां बन रही हैं। एक बार में 20,000 पूड़ियां तलने वाली मशीन अपना काम कर रही है।
राजस्थान चौक के लिए आकृति पंवार की रिपोर्ट