25 कमरों के बंगले में रहते थे भगवान दादा, इनके थप्पड़ ने बिगाड़ दिया था ललिता पवार का चेहरा

चौक टीम, जयपुर गुजरे जमाने के एक्टर, कॉमेडियन और डायरेक्टर भगवान दादा की आज 110वीं बर्थ एनिवर्सरी है। ‘शोला जो भड़के’ और ‘ओ बेटा जी, ओ बाबू जी’ के जैसे हिट गाने उन्हीं पर फिल्माए गए हैं। उन्होंने अपने पूरे करियर में 300 फिल्मों में काम किया। फिल्मों से आने से पहले वो कपड़े की मिल में काम करते थे। वहीं जब फिल्मों में आए तो एक्शन फिल्मों में नए-नए ट्रेंड्स स्थापित किए। बिना बॉडी डबल स्टंट करने की शुरुआत उन्होंने ही की थी। परफेक्शन पर इतना ध्यान देते थे कि सीन रियल लगे इसके लिए उन्होंने फिल्म के एक सीन में असली नोट उड़ा दिए थे। रईस इतने थे कि 25 कमरों वाले बंगले और 7 लग्जरी कारों के मालिक थे। सेट पर हर दिन नई कार से जाते थे। हालांकि, एक गलत कदम की वजह से उनका स्टारडम कम हो गया। बंगला-कार सब बेचना पड़ा। आखिरी वक्त चॉल में गुजारा।


परिवार की मदद के लिए कपड़ा मिल में काम किया


भगवान दादा का जन्म 1913 में महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उनका असली नाम भगवान अबाजी पांडव था। वो टेक्सटाइल मिल वर्कर के बेटे थे। काम के सिलसिले में उनके पिता मुंबई आ गए, जहां वो दादर और परेल में रहते थे। भगवान दादा का बचपन भी इन्हीं इलाकों में बीता और इसी दौरान फिल्मों में उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से भगवान दादा को चौथी क्लास में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसके बाद परिवार की मदद करने के लिए वह भी कपड़े की मिल में मजदूरी करने लगे। उन्हें ये काम बिल्कुल पसंद नहीं था, क्योंकि उनका मन तो फिल्मों में एक्टिंग करने का था।

एक्टर, डायरेक्टर और कॉमेडी के किंग


भगवान दादा को पहलवानी का बहुत शौक था। वो अक्सर पहलवानी कॉम्पिटिशन में पार्टिसिपेट किया करते थे। ऐसे ही किसी एक कॉम्पिटिशन के दौरान फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े किसी शख्स की नजर उन पर पड़ी। फिर उस शख्स ने भगवान दादा की सिफारिश की, जिसके बाद उन्हें फिल्म क्रिमिनल में काम करने का मौका मिला। भगवान दादा ने साइलेंट फिल्मों के दौर में इंडियन सिनेमा में काम करना शुरू किया था। एक्टिंग करने के साथ ही उन्होंने फिल्म मेकिंग भी सीखी। उन्होंने 1938 में चंद्रराव कदम के साथ मिलकर फिल्म बहादुर किशन डायरेक्ट की थी। 1938 से लेकर 1949 तक भगवान दादा ने कम बजट की एक्शन फिल्मों को डायरेक्ट किया। इसके बाद उन्होंने एक तमिल फिल्म ‘वाना मोहिनी’ का डायरेक्शन किया था। ये फिल्म हॉलीवुड फिल्म ‘डोरोथी लैमौर’ की रीमेक थी। ये ऐसी फिल्म थी कि जिसमें कोई सेलेब्स लीड रोल में नहीं था, बल्कि चंदू नाम के एक हाथी ने लीड रोल प्ले किया था।

फिल्मों में बिना बॉडी डबल स्टंट करने की शुरुआत की


भगवान दादा की खासियत थी कि फिल्मों में वो एक्शन सीन खुद किया करते थे। कहा जाता है कि बिना बॉडी डबल एक्शन सीन शूट करने की शुरुआत उन्होंने ही की थी। वो अमेरिकन एक्टर डगलस फेयरबैंक्स से बहुत इंस्पायर थे। डगलस फेयरबैंक्स साइलेंट फिल्मों के दौर के ऐसे एक्टर थे, जिन्होंने अपने करियर की सभी फिल्मों में बिना बॉडी डबल के सारे स्टंट खुद ही किए थे। डगलस फेयरबैंक्स को देखकर ही भगवान दादा भी अपनी फिल्मों में सारे स्टंट खुद ही करते थे। यही वजह है कि राज कपूर उन्हें इंडियन डगलस कहकर बुलाते थे।

भगवान दादा के जोरदार थप्पड़ से बिगड़ा था ललिता पवार का चेहरा


1942 की फिल्म जंग-ए-आजादी में ललिता पवार लीड रोल में थीं। भगवान दादा ने भी इस फिल्म में काम किया था। इस फिल्म से जुड़ा किस्सा है कि शूटिंग के दौरान भगवान दादा को ललिता पवार को एक थप्पड़ मारना था, पर उन्होंने इतनी जोर से मार दिया कि ललिता को बहुत चोट लग गई।प्पड़ लगते ही ललिता जमीन पर गिर गईं। फिर उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां वो 2 दिन तक कोमा में रहीं। उनकी बाईं आंख की एक नस अंदर से फट गई थी और उनके मुंह के बाईं तरफ लकवा मार गया। 3 साल उनका इलाज चला, इसके बावजूद आंख ठीक नहीं हो पाई। इसका असर ललिता पवार के करियर पर भी पड़ा। इस हादसे के बाद उन्होंने निगेटिव रोल करना शुरू कर दिया। हालांकि, निगेटिव रोल से उनको ज्यादा पॉपुलैरिटी मिली।

राज कपूर की सलाह पर बनाई थी ‘अलबेला’


राज कपूर और भगवान दादा अच्छे दोस्त थे। राज कपूर ने उन्हें सलाह दी थी कि वो एक सोशल मैसेज वाली फिल्म बनाए। राज कपूर के सुझाव पर उन्होंने फिल्म अलबेला बनाने के बारे में सोचा। प्लान तो बना लिया, लेकिन फिल्म मेकिंग के लिए उनके पास बजट नहीं था। पैसों का जुगाड़ उन्होंने दोस्तों से उधार मांग कर किया और फिल्म बनाई। रिलीज के बाद ये फिल्म 1951 की तीसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी। इस फिल्म के गीत ‘शोला जो भड़के’ और ‘भोली सूरत दिल के खोटे’ आज भी याद किए जाते हैं। इस फिल्म की सफलता के बाद उनका जीवन पटरी पर आ गया।


7 कारें और 25 कमरों वाले बंगले के मालिक थे, फिल्म में उड़ाए थे असली नोट


भगवान दादा शेवरले कार के शौकीन थे। यही कारण है कि उन्होंने ‘शेवरले’ नाम की फिल्म में भी काम किया था। रियल लाइफ में उनके पास 7 कारें थीं और वो हर दिन सेट पर नई कार से जाते थे। कारों के अलावा वो लग्जरी घरों के भी शौकीन थे। मिली जानकारी के मुताबिक, जुहू में समुद्र किनारे उनका 25 कमरों वाला बंगला भी था। उनकी रईसी से जुड़ी ये बात भी फेमस है कि एक फिल्म के सीन में उन्हें पैसों की बारिश दिखानी थी। सीन रियल लगे, इस वजह से उन्होंने सीन के दौरान असली नोट उड़ाए थे।


घर में इकट्ठा हो गई थीं शराब की हजारों बोतलें


आर्थिक तंगी के कारण भगवान दादा को मुंबई की चॉल में गुजारा करना पड़ा। इस दुख से उबरने के लिए उन्होंने शराब का सहारा ले लिया। कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि वो इतनी शराब पीते थे कि उनके घर में शराब की हजारों बोतलें इकट्ठा हो गई थीं। बुरे वक्त में भी फैंस से मिला खूब प्यार हालांकि इतने बुरे वक्त के बाद भी लोगों का उनके प्रति प्यार कम नहीं हुआ था। गणेश चतुर्थी के दौरान जब गणपति का जुलूस निकलता था, तब जुलूस उनकी चॉल के पास जरूर रुकता। भगवान दादा आते, अपना सिग्नेचर स्टेप करते थे, फिर जुलूस आगे बढ़ता।

मौत पर PM अटल बिहारी वाजपेयी ने जताया था

शोक,4 फरवरी 2002 को हार्ट अटैक से भगवान दादा का निधन हो गया। उनकी मौत पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शोक जताया था और उनकी तारीफ में कहा था कि भगवान दादा अपनी एक्टिंग और डांस से हिंदी सिनेमा में एक नया बदलाव लाए जो अमिताभ, गोविंदा और मिथुन ने किया डांस को फॉलो अमिताभ बच्चन की बतौर सोलो हीरो पहली फिल्म ‘बॉम्बे टु गोवा’ थी। उस वक्त अमिताभ को डांस नहीं आता था। फिल्म के एक गाने देखा न हाय रे सोचा न हाय रे रख दी निशाने पे जान… पर वो सही डांस नहीं कर पा रहे थे। तभी उन्हें भगवान दादा का एक डांस स्टेप याद आया, जिसे अपना कर उन्होंने खुद का एक स्टाइल डेवलप किया। उनका ये स्टाइल भगवान दादा के स्टाइल जैसा ही था। बिग बी के अलावा गोविंदा और मिथुन भी भगवान दादा के डांस से प्रेरित थे। भगवान दादा ने ऋषि कपूर को डांस के स्टेप सिखाए थे।

आकृति पंवार की रिपोर्ट

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